उत्तर प्रदेश में बिजली विभाग में कार्यरत संविदा कर्मचारियों की नौकरी पर संकट मंडरा रहा है। हाल ही में सरकार ने 1200 संविदा कर्मचारियों को नौकरी से हटा दिया, जिससे पूरे प्रदेश में हड़कंप मच गया है। इस फैसले के बाद अन्य 20,000 संविदा कर्मचारियों में भी नौकरी जाने का डर बना हुआ है। कई जिलों में इस फैसले के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया गया। संघर्ष समिति के नेताओं ने इसे निजीकरण का प्रभाव बताया है और सरकार के इस कदम का कड़ा विरोध किया है।
संविदा कर्मचारियों पर कार्रवाई क्यों?
बिजली विभाग के निजीकरण की प्रक्रिया के चलते सरकार अब उन संविदा कर्मचारियों को भी टारगेट कर रही है, जो महीने में मुश्किल से 10-12 हजार रुपये कमाते हैं। सरकार का तर्क है कि जब स्थायी कर्मचारी पहले से मौजूद हैं, तो संविदा कर्मचारियों को रखने की कोई आवश्यकता नहीं है। अधिकारी बताते हैं कि प्रदेश में लगभग 30-32 हजार संविदा कर्मचारी कार्यरत हैं और यदि प्रत्येक को औसतन 10 हजार रुपये मानदेय दिया जाए, तो यह राशि सालाना 350 करोड़ रुपये के करीब पहुंच जाती है। सरकार इसी खर्च को कम करने के लिए संविदा कर्मियों की छंटनी कर रही है।
संघर्ष समिति का आरोप – निजीकरण की साजिश
संघर्ष समिति के नेता शैलेन्द्र दुबे का कहना है कि सरकार बिजली विभाग के निजीकरण को बढ़ावा दे रही है। उनके अनुसार, जो निजी कंपनियां इस काम को संभालेंगी, वे अपनी शर्तों पर कर्मचारियों को रखेंगी और कम लोगों से अधिक काम करवाएंगी। इसलिए सरकार पहले से कार्यरत संविदा कर्मियों को हटा रही है।
संघर्ष समिति के एक अन्य नेता राजीव सिंह ने भी इस फैसले की आलोचना करते हुए कहा कि सरकार संविदा कर्मियों को मनमाने ढंग से हटा रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि यह सब निजी कंपनियों के लाभ के लिए किया जा रहा है।
स्थायी कर्मचारियों में भी डर का माहौल
संविदा कर्मियों की छंटनी से बिजली विभाग के स्थायी कर्मचारी भी चिंतित हैं। उन्हें डर है कि यदि सरकार संविदा कर्मचारियों को हटा सकती है, तो आने वाले समय में स्थायी कर्मचारियों की नौकरियां भी खतरे में पड़ सकती हैं। सरकार के इस कदम से पूरे विभाग में असमंजस और भय का माहौल बना हुआ है।
क्या 25% संविदा कर्मी हटाए जाएंगे?
संघर्ष समिति का दावा है कि सरकार 25% संविदा कर्मचारियों को हटाने की योजना बना रही है। इससे प्रदेश भर में लगभग 20,000 संविदा कर्मचारियों पर नौकरी जाने का खतरा मंडरा रहा है। समिति के नेताओं का कहना है कि सरकार पहले संविदा कर्मियों को हटा रही है और बाद में स्थायी कर्मचारियों पर भी यह संकट आ सकता है।
विरोध जारी रहेगा
संविदा कर्मियों की छंटनी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन लगातार जारी है। राजधानी लखनऊ सहित प्रदेश के कई जिलों में कर्मचारी सड़कों पर उतर चुके हैं। संघर्ष समिति ने सरकार से अपील की है कि संविदा कर्मचारियों को वापस रखा जाए और उनकी नौकरी की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए। अगर सरकार ने अपना फैसला वापस नहीं लिया, तो आंदोलन और तेज किया जाएगा।
