भारत में संविधान को लागू हुए 75 साल हो चुके हैं। इस दौरान इसमें कई संशोधन किए गए, जो देश के सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक ताने-बाने को प्रभावित करते रहे हैं। आइए जानते हैं इन संशोधनों की कहानी, जिन्होंने भारतीय संविधान और देश पर गहरा असर डाला।
भारत के संविधान की अनोखी विशेषता
26 जनवरी 1950 को जब भारत का संविधान लागू हुआ, तब इसमें 395 अनुच्छेद और 8 अनुसूचियां थीं। डॉ. भीमराव अंबेडकर की अगुवाई में बने इस संविधान को इतना मजबूत और विस्तृत बनाया गया कि यह 75 सालों बाद भी देश का मार्गदर्शन कर रहा है।
यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो की एक स्टडी के अनुसार, दुनिया में संविधानों की औसत उम्र सिर्फ 17 साल है। इसके विपरीत भारत का संविधान अब 75 वर्षों से सफलतापूर्वक चल रहा है। जबकि पड़ोसी देशों जैसे श्रीलंका ने तीन बार, पाकिस्तान ने छह बार और नेपाल ने पांच बार अपना संविधान बदला है।
संविधान संशोधन: अब तक का सफर
भारत में पहला संविधान संशोधन 18 जून 1951 को हुआ था। वहीं, 28 सितंबर 2023 को 106वां संशोधन किया गया। अब तक कुल 106 संशोधन हो चुके हैं। इनमें से कई संशोधन ऐसे थे, जिन्होंने देश के राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्य को पूरी तरह बदल दिया।
25 सबसे अहम संविधान संशोधन
1. पहला संशोधन (1951)
इस संशोधन के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सीमित करते हुए कुछ प्रतिबंध जोड़े गए।
2. चौथा संशोधन (1955)
- निजी संपत्ति की जब्ती से पहले वारंट को अनिवार्य किया गया।
- राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के हित में खनिज और तेल संसाधनों पर सरकारी नियंत्रण तय हुआ।
3. नौवां संशोधन (1960)
भारत-पाकिस्तान के बीच 1958 में हुए समझौते के अनुसार, क्षेत्रीय सीमाओं का पुनर्निर्धारण किया गया।
4. 17वां संशोधन (1964)
जमीन अधिग्रहण को वैध करार देते हुए इसे संविधान के नौवें भाग में शामिल किया गया।
5. 25वां संशोधन (1971)
- निजी संपत्ति के अधिग्रहण पर सरकार द्वारा मुआवजे और अधिकारों पर सीमाएं लगाई गईं।
6. 31वां संशोधन (1973)
- लोकसभा की सीटों की संख्या 525 से बढ़ाकर 545 की गई।
- नई सीटें विशेष रूप से पूर्वोत्तर राज्यों को दी गईं।
7. 39वां संशोधन (1975)
प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के चुनाव को इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा अवैध घोषित किए जाने के बाद यह संशोधन लाया गया। इसमें प्रधानमंत्री और अन्य उच्च पदों को न्यायिक समीक्षा से बाहर रखा गया।
8. 41वां संशोधन (1976)
सरकारी कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति की उम्र 60 से बढ़ाकर 62 साल की गई।
9. 44वां संशोधन (1979)
- आपातकाल के बाद 42वें संशोधन के कई प्रावधानों को खत्म किया गया।
- मानवाधिकारों की सुरक्षा के लिए विशेष प्रावधान जोड़े गए।
10. 61वां संशोधन (1989)
मतदान की उम्र 21 से घटाकर 18 वर्ष कर दी गई।
11. 74वां संशोधन (1992)
शहरी निकायों को अधिक स्वायत्तता और शक्तियां प्रदान की गईं।
12. 77वां संशोधन (1995)
अनुसूचित जाति और जनजातियों को पदोन्नति में आरक्षण का अधिकार दिया गया।
13. 86वां संशोधन (2002)
बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा को मौलिक अधिकार बनाया गया।
14. 91वां संशोधन (2004)
- केंद्र और राज्य सरकारों में मंत्रियों की संख्या को कुल विधायकों के 15% तक सीमित किया गया।
- दल-बदल कानून को मजबूत किया गया।
15. 93वां संशोधन (2006)
अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिए सरकारी और निजी शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण लागू किया गया।
16. 97वां संशोधन (2012)
सहकारी समितियों के कामकाज को सुव्यवस्थित करने के लिए प्रावधान जोड़े गए।
17. 99वां संशोधन (2014)
राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) का गठन किया गया। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इसे असंवैधानिक घोषित कर दिया।
18. 101वां संशोधन (2016)
भारत में वस्तु एवं सेवा कर (GST) लागू करने का मार्ग प्रशस्त किया।
19. 103वां संशोधन (2019)
आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के लिए 10% आरक्षण का प्रावधान किया गया।
20. 106वां संशोधन (2023)
महिलाओं के लिए लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में एक-तिहाई सीटों पर आरक्षण का प्रावधान किया गया।
संविधान की ताकत: भारतीय लोकतंत्र की रीढ़
भारत का संविधान केवल एक दस्तावेज नहीं, बल्कि देश के करोड़ों लोगों की उम्मीदों और अधिकारों का प्रतीक है। हर संशोधन ने इसे और मजबूत बनाया है, ताकि यह बदलते समय और समाज के साथ कदम से कदम मिलाकर चल सके।
भारत का संविधान, जो दुनिया में अपनी लंबी आयु और स्थिरता के लिए जाना जाता है, आने वाले वर्षों में भी भारत की प्रगति का मार्गदर्शन करता रहेगा।
संविधान में किए गए ये संशोधन हमें यह सिखाते हैं कि कैसे एक जीवंत लोकतंत्र समय के साथ खुद को ढालता है और नागरिकों की जरूरतों को पूरा करता है।