जिस बेटी के जन्म पर सास-ससुर ने घर से निकाला, उसी को अफसर बनाकर मां ने लिया 'बदला'... आंखे भिगो देगी ये कहानी


यह कहानी केवल एक मां और बेटी की नहीं है, बल्कि यह साहस, संघर्ष और अटूट विश्वास की मिसाल है। बेबी सरकार की यह कहानी आपकी आंखें नम कर देगी और दिल को छू जाएगी।


एक बेटी का जन्म और मां की परीक्षा का आरंभ


असम के श्रीभूमि जिले में रहने वाली बेबी सरकार की जिंदगी में उस वक्त उथल-पुथल मच गई, जब शादी के बाद वह गर्भवती हुईं। उनके ससुरालवालों ने स्पष्ट कह दिया कि उन्हें केवल बेटा चाहिए। अगर बेटी हुई, तो उन्हें घर छोड़ना पड़ेगा। यह शर्त अन्यायपूर्ण थी, लेकिन उनके पति ने भी इसका विरोध नहीं किया।

बेबी ने यह अपमान सहा और उम्मीद के साथ अपनी बेटी को जन्म दिया। लेकिन जब बेटी दीक्षा पैदा हुई, तो वही हुआ जिसका डर था। ससुरालवालों ने बेबी को घर से निकाल दिया। पति भी इस कठिन समय में उनके साथ नहीं खड़ा हुआ। एक नवजात बच्ची की मां बनकर बेबी को ससुराल के तानों और समाज के विरोध का सामना करना पड़ा।


संघर्षों से भरी जिंदगी का आगाज


ससुराल से निकाले जाने के बाद बेबी अपने पिता के घर लौट आईं। लेकिन उनके पिता के पास सीमित साधन थे। फिर भी, उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। उनके पति ने कभी संपर्क नहीं किया, और 2011 में उनका निधन हो गया। 11 साल बाद 2022 में उनकी सास भी गुजर गईं।

बेबी की मुश्किलें तब और बढ़ गईं जब उनकी बड़ी बहन बिजोया, जो LIC में काम करती थीं, डिप्रेशन से जूझने लगीं। बिजोया के पति का निधन हो गया था और उनके पास भी एक बच्चा था। ऐसे में बेबी पर दो परिवारों की जिम्मेदारी आ गई।


बेटी दीक्षा के लिए मां का बलिदान


बेबी अपनी बहन के घर 15 साल तक रहीं और दोनों परिवारों की देखभाल करती रहीं। इस दौरान उन्होंने अपनी बेटी दीक्षा की परवरिश और पढ़ाई के लिए हर संभव कोशिश की। जब दीक्षा ने 10वीं की परीक्षा पास की, तो मां-बेटी ने एक छोटे से किराए के घर में रहने का फैसला किया।

बेबी की खुद की पढ़ाई शादी के बाद अधूरी रह गई थी, लेकिन उन्होंने दीक्षा को अच्छी शिक्षा देने में कोई कसर नहीं छोड़ी। दीक्षा ने गुवाहाटी के एक कॉलेज से बॉटनी में स्नातक किया।


मौसी बिजोया का समर्थन और बेटी की मेहनत


दीक्षा की पढ़ाई के लिए उनकी मौसी बिजोया ने बैंक से 2 लाख रुपये का लोन लिया। इसके बाद बेबी भी अपनी बेटी के साथ गुवाहाटी चली गईं। दीक्षा ने अपनी मेहनत से "बडिंग एस्पिरेंट्स" नाम का एक यूट्यूब चैनल शुरू किया, जिसकी कमाई से उनकी पढ़ाई का खर्च पूरा होने लगा।

2023 में दीक्षा ने असम सिविल सर्विस की तैयारी शुरू की। इस दौरान मां और बेटी दोनों ने दिन-रात मेहनत की। आखिरकार, मेहनत रंग लाई।


एक नई शुरुआत: बेटी बनी अफसर


असम सिविल सर्विस के परिणाम आए और दीक्षा का नाम मेरिट लिस्ट में आ गया। यह वह क्षण था, जिसने बेबी के सभी संघर्षों को सार्थक बना दिया। अब दीक्षा को सरकारी आवास मिलेगा, जहां वह अपनी मां के साथ रहेंगी।

बेबी ने गर्व से बताया कि उनकी बेटी ने साबित कर दिया कि लड़कियां भी वह सबकुछ कर सकती हैं, जो लड़कों से उम्मीद की जाती है। वहीं, दीक्षा अपनी सफलता का श्रेय अपनी मां और मौसी को देती हैं।


मां का सिर गर्व से ऊंचा


दीक्षा का कहना है कि उनकी मां ने अपना पूरा जीवन उनके लिए समर्पित कर दिया। अब समय आ गया है कि उनकी मां आराम करें। सरकारी आवास में प्रवेश के साथ ही बेबी और दीक्षा की जिंदगी एक नए अध्याय की शुरुआत करेगी, जहां संघर्ष की जगह सुकून और गर्व होगा।

यह कहानी न केवल एक मां-बेटी के अटूट रिश्ते की है, बल्कि यह संदेश देती है कि समाज की बंदिशें और चुनौतियां भी हार मान जाती हैं, अगर हौसले और मेहनत से सामना किया जाए।