चिकित्सकों ने मृत घोषित कर दिया 2 घंटे फ्रीजर में रखा चिता पर लिटाते ही चलने लगी सा से 12 घंटे बाद तोड़ा दम
राजस्थान के झुंझुनूं जिले में एक ऐसी घटना घटी जिसने हर किसी को हैरान कर दिया। एक व्यक्ति, जिसे डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया था, चिता पर रखे जाने के बाद अचानक जीवित हो उठा। हालांकि, जयपुर के अस्पताल में इलाज के दौरान 12 घंटे तक जिंदा रहने के बाद उसने दोबारा दम तोड़ दिया। इस घटना ने चिकित्सा जगत में लापरवाही और इंसानी जिंदगी के साथ खिलवाड़ पर सवाल खड़े कर दिए।
मौत की घोषणा और चिता पर जीवन
झुंझुनूं जिले के बगड़ कस्बे में मां सेवा संस्थान द्वारा संचालित एक आश्रय गृह में रहने वाले रोहिताश नामक युवक की तबीयत बिगड़ने पर उसे जिला मुख्यालय के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया। इमरजेंसी वार्ड में डॉक्टरों ने रोहिताश को मृत घोषित कर दिया। इसके बाद शव को मोर्चरी के डीप फ्रीजर में करीब ढाई घंटे तक रखा गया। पुलिस ने औपचारिकता पूरी करते हुए पंचनामा बनाया और शव को अंतिम संस्कार के लिए आश्रय गृह के पदाधिकारियों को सौंप दिया।
श्मशान घाट में चिता पर जैसे ही रोहिताश को रखा गया, वहां मौजूद लोगों ने देखा कि उसके शरीर में हलचल हो रही है और उसकी सांसें चल रही हैं। यह देखकर लोग डर गए और तुरंत एंबुलेंस बुलाकर उसे दोबारा अस्पताल पहुंचाया गया।
चिकित्सीय लापरवाही और डॉक्टरों पर कार्रवाई
रोहिताश के जिंदा होने की खबर से अस्पताल में हड़कंप मच गया। जो डॉक्टर उसे मृत घोषित कर चुके थे, उनकी लापरवाही सामने आ गई। झुंझुनूं के कलेक्टर रामावतार मीणा ने इस घटना को गंभीर मानते हुए जांच कमेटी गठित की। जांच में पाया गया कि डॉक्टरों ने घोर लापरवाही की थी।
इस रिपोर्ट के आधार पर राजस्थान सरकार ने बीडीके अस्पताल के तीन डॉक्टरों – प्रमुख चिकित्सा अधिकारी डॉ. संदीप पचार, डॉ. योगेश कुमार जाखड़ और डॉ. नवनीत मील को तुरंत प्रभाव से निलंबित कर दिया। आदेश में स्पष्ट रूप से कहा गया कि इन डॉक्टरों ने मरीज को जीवित होते हुए भी मृत घोषित कर दिया, जो एक गंभीर चूक है।
जयपुर में इलाज और अंतिम मृत्यु
झुंझुनूं के अस्पताल में भर्ती होने के बाद रोहिताश को बेहतर इलाज के लिए जयपुर के एसएमएस अस्पताल भेजा गया। वहां इमरजेंसी यूनिट में उसे भर्ती किया गया, लेकिन शुक्रवार सुबह करीब 5 बजे उसकी सांसे हमेशा के लिए थम गईं।
चूरू जिले की एक और ऐसी घटना
झुंझुनूं की घटना ने लोगों को चूरू जिले की एक पुरानी घटना की याद दिला दी। रतनगढ़ इलाके में रामावतार नामक व्यक्ति को डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया था, लेकिन करीब साढ़े पांच घंटे बाद उसकी नब्ज चलने लगी। उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां 32 घंटे तक जिंदा रहने के बाद उसकी मृत्यु हो गई।
लोगों की प्रतिक्रिया और सवाल
इस घटना ने आम जनता और विशेषज्ञों के बीच कई चर्चाओं को जन्म दिया। कुछ लोगों ने इसे भगवान की लीला कहा, तो कुछ ने डॉक्टरों की लापरवाही को जिम्मेदार ठहराया। इस मामले ने चिकित्सा तंत्र की खामियों को उजागर किया और सवाल खड़े किए कि मरीजों की सही जांच क्यों नहीं की जाती।
सरकार की भूमिका
सरकार ने मामले को गंभीरता से लेते हुए न केवल डॉक्टरों को निलंबित किया बल्कि यह सुनिश्चित करने की भी बात कही कि भविष्य में इस तरह की घटनाएं न हों। चिकित्सा विभाग को अपनी प्रक्रियाओं को और मजबूत करने का निर्देश दिया गया।
निष्कर्ष
रोहिताश की घटना ने न केवल चिकित्सा तंत्र की कमजोरियों को उजागर किया, बल्कि यह भी दिखाया कि जीवन और मृत्यु के बीच सिर्फ एक सही निर्णय का फर्क होता है। इस घटना ने यह सवाल खड़ा किया है कि क्या चिकित्सा व्यवस्था वाकई मानव जीवन की रक्षा के लिए पूरी तरह तैयार है?